Friday 19 February 2016

बदल रहा है जग बदल रहे है हम पर इंसानियत के लिए क्या कर रहे है हम 
सोचा है कभी उन बाशिंदों के लिए जिनको भी है हक़ बढ़ने का पड़ने का .... न सिर्फ सहने का गम  

जिन्हे नसीब नहीं रोटी कपडा और  माकन, वो कैसे कहे 'मेरा देश महान' 
सोच तो ये हो की हक़ मिले बराबरी का ,भूखा न सोए एक भी इन्सान 
चैन न ले हम जब तक रहे बाकी एक भी बेईमान 
लूटखोरी जालसाज़ी से नहीं बनता मुल्क ये महान 
प्रन करो की चैन न लोगे,...  वोट भी न दोगे, 
जब तक न हट जाए सफ़ेद कुर्तो से भ्रस्टता  के ये काले निसान  

ज़िंदगी लगा दी देश की अस्मिता को बचने में, उन क्रांतिकारियों की शपथ ले बनते है कुछ लोग महान 
इन्हे क्या पता ज़िंदगी लूटा दी जिन्होंने नहीं था मन में उनके तनिक भी भेदभाव या अभिमान 
चाहते थे देश को दिलाना वो सम्मान जिसके लिए तरसता रह गया इस देश का इतिहास महान 

अभी वक़्त है पर घडी सक्त है बांध लो पेटी  कमर की जाँच लो तहसीर दिल की 
फिर न कहना सोचा नहीं समझा नहीं क्युकी लड़ना नहीं है बहरी क्रूर शाशको से 
  ..... जंग है इस बार देश में  छुपे हुए  गद्दारों से.... 


अंकित द्विवेदी


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