Saturday 4 June 2016

                     प्रेरणा                                

जब    गिरा   है  उठा है,      बढ़ा    है   तू 
हर  ठोकर  पर न  हार  कर थका  है तू । 
जिस डगर जिस गली जिस मोड़ पर बड़ा है तू 
हर दम ऐ साहसी, कुछ तो बदला  है तू ।।  

कभी  थी चुनौती  बड़ी कभी  थी राह भी नहीं 
थी  आँधियाँ थी कभी, गम के पहाड़ भी कई ।  
खोया  बहुत  छोड़ा  बहुत पर  न रोया  है तू 
ना  डर, ना  हार, ना मन मारकर बैठा है तू । । 

फिर सोचता हु, कि थी अद्रयश्य शक्ति, कुछ तेरी भक्ति 
जिस  पर  सवार,  बढ़ता  चला  है  तू । 
पर आज क्यू मन कुछ उदास कुछ परेशान  है 
ढूढ़ता क्यों उसे जो दूर बहुत दूर कही विराजमान है।।

लिखित ::अंकित द्विवेदी 




No comments:

Post a Comment