प्रेरणा
जब गिरा है उठा है, बढ़ा है तू
हर ठोकर पर न हार कर थका है तू ।
जिस डगर जिस गली जिस मोड़ पर बड़ा है तू
हर दम ऐ साहसी, कुछ तो बदला है तू ।।
कभी थी चुनौती बड़ी कभी थी राह भी नहीं
थी आँधियाँ थी कभी, गम के पहाड़ भी कई ।
खोया बहुत छोड़ा बहुत पर न रोया है तू
ना डर, ना हार, ना मन मारकर बैठा है तू । ।
फिर सोचता हु, कि थी अद्रयश्य शक्ति, कुछ तेरी भक्ति
जिस पर सवार, बढ़ता चला है तू ।
पर आज क्यू मन कुछ उदास कुछ परेशान है
ढूढ़ता क्यों उसे जो दूर बहुत दूर कही विराजमान है।।
लिखित ::अंकित द्विवेदी
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